Monday, 24 December 2018

जीत - हार के मायने - विधानसभा चुनाव राजस्थान


हमारी जीत क्या है?
जीत के मायने क्या है?


इन विधानसभा चुनावों में हम किस लिए लड़े थे?

कोंग्रेस को जिताने ओर अपने मंत्री बनाने के लिए?


नही।
हरगिज नही।


इस बार के चुनाव थे

अहंकार vs स्वाभिमान

सत्ता के मद में चूर उस पार्टी के रहनुमाओं के खिलाफ जिसने अपनी ही रीढ़ की हड्डी को कमजोर करने का कार्य किया। सीधे शब्दो में कहूँ तो राजपूत जो सदैव ही बीजेपी के हितकारी रहे है उनके द्वारा राजपूतो को हद से ज्यादा अनदेखा करने पर उन्हें अपनी प्रतिष्ठा और अपने आप को जीवित महसूस कराना ही हमारी जीत है।

हम ना तो कोंग्रेस को जीताने के लिए लड़े ना अपना मंत्री बनाने के लिए, हम तो सिर्फ सत्ताधारी पार्टी को ये अहसास कराने के लिए लड़े थे कि भाई जिस समाज को तुम अनदेखा कर रहे हो वो समाज ही तुम्हारी जीवनरेखा है अगर उसको ही खत्म करने का प्रयत्न करोगे तो तुम भी जीवित नही रह पाओगे।


ओर इस बात का अहसास करवा भी दिया। जहां राजपूत एकमत होकर बीजेपी के खिलाफ गए वहां बीजेपी का कंडीडेट हार गया और जहां राजपूतों का समर्थन मिला वहां जीत गया। मतलब साफ है राजपूत भी अब वोट बैंक बनने की ओर अग्रसर है।


तो फिर मंत्री पद न मिलने पर ये है तौबा क्यों?

अपने अस्तित्व से ज्यादा आवश्यक है क्या मंत्री पद


शायद नही तो फिर जीत का जश्न मनाइए और अपने जीवित होने का प्रमाण देकर अपने आपको राजनीतिक स्तर पर स्थापित कीजिये।

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*कुँवर चेतन सिंह चौहान*

Sunday, 30 September 2018

ऐसा वीर जिसने सेना में आगे रहने को अपना सिर काटकर फेंका था किले में



राजस्थान का इतिहास यहां के राजपूतों के हजारों वीरता की सच्ची गाथाओं के लिए भी जाना जाता है। उन्हीं गाथाओं मे से एक है जैत सिंह चुण्डावत की कहानी। मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह की सेना की दो राजपूत रेजिमेंट चुण्डावत और शक्तावत में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए एक प्रतियोगिता हुई थी। इस प्रतियोगिता को राजपूतों की अपनी आन, बान और शान के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देने वाली कहावत का एक अच्छा उदाहरण माना जाता है।
मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह की सेना में विशेष पराक्रमी होने के कारण चुण्डावत खांप के वीरों को ही युद्ध भूमि में अग्रिम पंक्ति में रहने का गौरव मिला हुआ था। वह उसे अपना अधिकार मानते थे। किन्तु शक्तावत खांप के वीर राजपूत भी कम पराक्रमी नहीं थे। उनकी भी इच्छा थी की युद्ध क्षेत्र में सेना में आगे रहकर मृत्यु से पहला मुकाबला उनका होना चाहिए। उन्होंने मांग रखी कि हम चुंडावतों से त्याग, बलिदान व शौर्य में किसी भी प्रकार कम नहीं है। युद्ध भूमि में आगे रहने का अधिकार हमें मिलना चाहिए। इसके लिए एक प्रतियोगिता रखी गई जिसे जीतने के लिए चुण्डावत ने अपना सिर खुद धड़ से अलग कर किले में फेंक दिया था।

सभी जानते थे कि युद्ध भूमि में सबसे आगे रहना यानी मौत को सबसे पहले गले लगाना। मौत की इस तरह पहले गले लगाने की चाहत को देख महाराणा धर्म-संकट में पड़ गए। किस पक्ष को अधिक पराक्रमी मानकर युद्ध भूमि में आगे रहने का अधिकार दिया जाए?

इसका निर्णय करने के लिए उन्होंने एक कसौटी तय की, जिसके अनुसार यह निश्चित किया गया कि दोनों दल उन्टाला दुर्ग (किला जो कि बादशाह जहांगीर के अधीन था और फतेहपुर का नवाब समस खां वहां का किलेदार था) पर अलग-अलग दिशा से एक साथ आक्रमण करेंगे व जिस दल का व्यक्ति पहले दुर्ग में प्रवेश करेगा उसे ही युद्ध भूमि में रहने का अधिकार दिया जाएगा।
प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए दोनों दलों के रण-बांकुरों ने उन्टाला दुर्ग (किले) पर आक्रमण कर दिया। शक्तावत वीर दुर्ग के फाटक के पास पहुंच कर उसे तोड़ने का प्रयास करने लगे तो चुंडावत वीरों ने पास ही दुर्ग की दीवार पर रस्से डालकर चढ़ने का प्रयास शुरू कर दिया। इधर शक्तावतों ने जब दुर्ग के फाटक को तोड़ने के लिए फाटक पर हाथी को टक्कर देने के लिए आगे बढाया तो फाटक में लगे हुए लोहे के नुकीले शूलों से सहम कर हाथी पीछे हट गया।
हाथी को पीछे हटते देख शक्तावतों का सरदार बल्लू शक्तावत, अद्भुत बलिदान का उदहारण देते हुए फाटक के शूलों पर सीना अड़ाकर खड़ा हो गया व महावत को हाथी से अपने शरीर पर टक्कर दिलाने को कहा जिससे कि हाथी शूलों के भय से पीछे न हटे।

एक बार तो महावत सहम गया, किन्तु फिर वीर बल्लू के मृत्यु से भी भयानक क्रोधपूर्ण आदेश की पालन करते हुए उसने हाथी से टक्कर मारी जिसके बाद फाटक में लगे हुए शूल वीर बल्लू शक्तावत के सीने में घुस गए और वह वीर-गति को प्राप्त हो गया। उसके साथ ही दुर्ग का फाटक भी टूट गया।

शक्तावत के दल ने दुर्ग का फाटक तोड़ दिया। दूसरी ओर चूण्डावतों के सरदार जैत सिंह चुण्डावत ने जब यह देखा कि फाटक टूटने ही वाला है तो उसने पहले दुर्ग में पहुंचने की शर्त जीतने के उद्देश्य से अपने साथी को कहा कि मेरा सिर काटकर दुर्ग की दीवार के ऊपर से दुर्ग के अन्दर फेंक दो। साथी जब ऐसा करने में सहम गया तो उसने स्वयं अपना मस्तक काटकर दुर्ग में फेंक दिया।
फाटक तोड़कर जैसे ही शक्तावत वीरों के दल ने दुर्ग में प्रवेश किया, उससे पहले ही चुण्डावत सरदार का कटा मस्तक दुर्ग के अन्दर मौजूद था। इस प्रकार चूणडावतों ने अपना आगे रहने का अधिकार अद्भुत बलिदान देकर कायम रखा।
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जय क्षात्र धर्म
जय भवानी
      🚩🚩🚩केसरिया क्रांतिकारी🚩🚩🚩
साभार :- गुमान सिंह चूंडावत पारडी

गुजरा जमाना - बदलाव की हकीकत


*गुजरा जमाना - बदलाव की हकीकत*


चलो आज एक हकीकत सुनाई जाए,
कुछ बीते जमाने की बाते बताई जाये,
कुछ असलियत इस बदलते वक्त की तुम्हे दिखाई जाए,
कुछ बातें पुरानी आज तुम्हे याद दिलाई जाए,

एक ऐसा गुजरा जमाना था,
जब सब यारो के बैठने का एक ठिकाना था,
रोज एक ही थाली में भाइयों का खाना था,
खाना क्या था साथ बैठकर बतलाने का एक बहाना था,

गांव के बीचों बीच एक चौपाल थी,
जहां से बनती राजीनीति की  सारी चाल थी,
रोज शाम को चिलम तम्बाकू का आभास था,
वही तो गांव में बुजुर्गों के होने का अहसास था,

रोज गौधुली वेला में गांव के युवा होते एक थे,
कुछ होती थी हंसी ठिठोली कुछ बनते कार्यक्रम नेक थे,
सभी युवाओं का बस एक सपना था,
की ये गांव नही एक पूरा परिवार अपना था,

लिखने को तो ना जाने और क्या क्या बातें लिख दूँ,
वो खेतों में कुएं पर नहाना ओर खेत में सोते हुए वो चांदनी राते लिख दूँ,
वो आसपड़ोस की भाभी का प्यार या घर के बुजुर्गों से पड़ती मार लिख दूँ,
या पड़ोसियों का अपनापन सगे सम्बन्धी जैसा व्यवहार लिख दूँ,

लिखने को बहुत कुछ है यार पर पढ़ने का वक्त कहाँ है,
स्वाभिमान पर उबाल खाता था जो वो अब रक्त कहाँ है,
वक्त की मार ने सोच बदली बदल दिए रहने के तरीके,
अब अपना घर आबाद रहे भाई चाहे बर्बाद रहे यही है जीने के सलीके...।।।।।।

😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊

*कुँवर चेतन सिंह चौहान (Chiksa)*

Saturday, 15 September 2018

एक राजपूत जिसे पूजता है मुस्लिम समाज - दौलत शाह मजार (दौलत सिंह शेखावत महरोली)

 


जोगीराम सिंह जी व दौलत सिंह जी दो भाई थे जो कि मूलतः ग्राम महरोली में जोध सिंह जी की कोटड़ी (छोटा पाना) में आते थे जोगीराम सिंह जी जयपुर दरबार के नोकरी करते थे और दौलत सिंह जी गांव में ही रहते थे उनके बड़े भाई जब भी जयपुर दरबार के यहां से छुट्टी पर गांव आते थे तो दौलत सिंह जी को डांट ते थे कि गांव में क्या करता है चल में जयपुर दरबार के यहां नोकरी लगा देता हूं फिर कुछ समय बाद वो भी जयपुर दरबार के यहां नोकरी लग जाते है पर उनके बड़े भाई जोगीराम जी जगदीश जी भगवान जिनका मंदिर अजीतगढ़ के पास स्थित है जगह मुझे ज्ञात नही पर जगदीश जी महाराज के जोगीराम जी परम् भक्त थे वो उस भक्ति में लीन हो गए उनकी पूजा पाठ करने लगे  फिर उधर दौलत सिंह जी जो को जयपुर दरबार के यहां नोकरी करने लग गए थे तो उस समय जयपुर रियासत मीणो से खूब युद्ध करा करती थी तो ऐसा ही एक युद्ध मीणो से चोमू के पास हुआ उस युद्ध  में दौलत सिंह जी ने एक वीर योद्धा की तरह युद्ध लड़ा उनका सर धड़ से अलग होने के बावजूद वो लगातार लड़े और आखिर कर उनका शरीर चोमू में उस जगह गिरा जहां आज उनकी मजार बनी हुई है । मजार बनने के मामले में कई मतभेद है कोई कह रहा है कि उनकी शमाधि की सेवा एक मुसलमान ने की इस वजह से धीरे धीरे नाम दौलत साह हो गया और कोई कह रहा है कि आखिरी सांस के समय उन्होंने मुसलमान से मदद मांगी तो मुस्लिम ने मदद की उनकी मजार बना दी । अब दौलत सिंह जी वीर गति को प्राप्त हो गए तो जयपुर राजघराने उस योद्धा को कोई मान नही दिया उनके परिवार तक कि सूद भी नही ली तो उनके परिवार वालो ने उनके बड़े भाई जोगीराम जी को खूब कोसा की तू ही उनको लेके गया वहाँ और खुद छोड़ के आगया   अब जोगीराम जी जगदीश जी महाराज के परम भक्त थे शक्तियां उनमे विराजमान थी उनको राजघराने पे गुस्सा आया और रातो रात अकेले ही चांदपोल का गेट उतार के जगदीश जी के मंदिर में लगा दिया ये कारनामा करने के बाद वो वापस भक्ति में लीन हो गए फिर जब जयपुर दरबार को ये बात पता लगी तो उन्होंने 50 योद्धाओ की एक टुकड़ी भेजी उनको लाने के लिए और उस टुकड़ी में जो योद्धा गए वो भी डरे हुए थे कि जो चांदपोल का गेट उतार सकता है वो कुछ भी कर सकता है तो उस टुकड़ी की सेना ने उनपे हमला उस समय किया जब वो भक्ति में लीन थे और उनकी गर्दन काट के जयपुर दरबार के सामने जब पेश की तो ज्यो ही कपड़ा उस गर्दन से हटाया तो चेहरा घूम गया ये देख के जयपुर दरबार अचंभित हुए और बोले किस वीर योद्धा की गर्दन लेके आगये तो जब दरबार को हकीकत मालूम पड़ी की ये भक्ति में लीन थे धोखे से इन्होंने इनकी गर्दन काट दी तो जयपुर दरबार काफी नाराज हुए और उन्होंने उस टुकड़ी में शामिल 50 के 50 यौद्धा को शूली पे लटका दिया। आज इस मजार पर ना केवल मुस्लिम अपितु हिन्दू भी माथा टेकने व अरदास माँगने जाते है।
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Source - कुँवर अजय सिंह शेखावत महरौली

जय क्षात्र धर्म
जय माँ भवानी

                       *केसरिया क्रांतिकारी*

Monday, 10 September 2018

श्री झुंझार जी महाराज - एक गौ रक्षक


सीकर के समीप मोरडूंगा ग्राम के बीचों बीच एक गौरक्षा के लिए शहीद होने वाले वीर का देवालय बना हुआ है। जहाँ भादवा सुदि द्वादशी को मेला लगता है। सैंकड़ों वर्षों से लगते आ रहे इस मेले व देवरे (देवालय) के पीछे इतिहास की एक कहानी छिपी है। इस कहानी में एक उद्भट वीर की शौर्यगाथा का इतिहास है। इस शौर्यगाथा के नायक ने गौरक्षा के लिए कुख्यात लुटेरों का मुकाबला करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था। आज उसी नायक को स्थानीय लोग लोक देवता के रूप में पूजते है और उसकी याद में बने देवालय पर हर वर्ष मेला भरता है।

यह देवालय है रतनसिंह बालापोता का (बालापोता कछवाह कुल की एक खांप है)। जयपुर जिले के बलखेण ग्राम में जन्में इस वीर को विपदा जन्म से ही विरासत में मिली थी। बाल्यकाल में माता-पिता दोनों ही नहीं रहे। सेवदड़ा ग्रामवासी इनकी मौसी ने इनका लालन-पालन किया। इनकी एक भुआ लाड़ोली के मेड़तिया राठौड़ों में ब्याही थी। उसके चतरसिंह नाम का एक पुत्र था। चतरसिंह, रतनसिंह का अभिन्न सहयोगी था। जब रतनसिंह युवा हुए तो इनकी सगाई रायांगणां के मांगलिया क्षत्रियों के यहाँ की गई। विवाह की तिथि भी निश्चित कर दी गई। भुआ के बेटे चतरसिंह को विवाह में आमंत्रित करने के लिए निमन्त्रण भेजा गया और चतरसिंह निमंत्रण पाकर सेवदड़ा गांव आ गए।

रतनसिंह कुशल घुड़सवार थे। उनके मांसोसा (मौसाजी) ने रतनसिंह को कन्हैया नामक अच्छी नस्ल का एक घोड़ा प्रसन्नतापूर्वक भेंट किया था। सेवदड़ा के ठाकुरों और धाड़ेतियों (डाकुओं) के आपस में बैर था। उन्होंने मौका देखा कि सेवदड़ा के ठाकुर रतनसिंह की शादी की तैयारियों में व्यस्त है, सो अवसर का फायदा उठाकर क्यों ना सेवदड़ा गांव का पशुधन घेरा जाय। धाडे़ती चुपचाप आये और गांव के खेतों में चर रही गायों को घेर कर लिया। ग्वालों ने कोटड़ी (ठाकुर का आवास) पर आकर अपना पशुधन डाकुओं से बचाने की फरियाद की। हाथों में कंकण बंधे हुए, पीठी की हुई, बान बैठे हुए (शादी की रस्में) रतनसिंह ने ग्वालों की गुहार सुनी। अपने घोड़े की ओर देखा, घोड़ा हिनहिनाया। गौरक्षा  हेतु पर्यन करने के लिए रतनसिंह ने चरवादार को घोड़े पर पाखर (जीन) कसने का आदेश दिया।

रतनसिंह और चतरसिंह दोनों हाथों में भाले थामें, पीठ पर ढाल बांधे, कमर पर तलवार बाँध, अपने घोड़ों पर सवार हो, धाड़ेतियों के पीछे दौड़े। रतनसिंह ने धाड़ेतियों के समीप पहुंचकर उन्हें ललकारा- कायरों की भांति गायें घेरकर (लूटकर) कैसे ले जा रहे हो। क्या इस धरती का कोई धणी-धोरी नहीं है। आमना-सामना हुआ। खूब खड्ग चले। धाडे़ती मुकाबले में ठहर नहीं सके। एक भाई ने पशुधन को संभाला। दूसरे ने धाड़ेतियों के खिलाफ मोर्चा संभाला और पशुधन को लेकर गांव आने लगे। रतनसिंह, चतरसिंह दोनों पशुधन लेकर जब गांव की ओर आने लगे, तब रास्ते में एक बूढी औरत मिली। बुढ़िया ने कहा कि इनमें मेरा केरड़ा (गाय का बच्चा) तो आया ही नहीं। तब रतनसिंह, चतरसिंह दोनों वापस गए। सरवड़ी और पूरणपुरा गांव के बीच फिर दोनों पक्षों के मध्य मुकाबला हुआ। इस मुकाबले में लाड़ोली के मेड़तिया चतरसिंह काम आये। रतनसिंह पास के गांव मावा तक धाड़ेतियों से लड़ते रहे। तभी एक धाड़वी के खड़्ग वार से रतनसिंह का मस्तक कटकर धरती पर गिर गया (जहाँ आज भी उनके स्मारक स्वरूप एक देवरी बनी है)। सिर कटने के बाद भी रतनसिंह की धड़ पशुओं को घेरकर गांव की ओर ला रही थी। मोरडूंगा गांव के पास सरवड़ी व पूरणपुरा गांव के कांकड़ के पास आते-जाते बालकों की दृष्टि मस्तक विहीन घुड़सवार पर पड़ी। बालकों ने उच्च स्वर से कहा- बिना मस्तक का शुरमां। इतना कहना था कि कमध (धड़) घोड़े से नीचे गिर पड़ा। घोड़ा वही खड़ा रहा, उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी।

इस गौरक्षक वीर के शव के साथ उसकी मंगेतर कुंवारी ही हो गई थी सती

गौरक्षा के लिए रतनसिंह बालापोता  द्वारा प्राणों के उत्सर्ग का समाचार रायांगणां के मांगलिया क्षत्रिय परिवार, जहाँ उसकी सगाई हुई थी, पहुंचा। तब उसकी मंगेतर मांगलियाणी कन्या रथ जुतवा कर मोरडूंगा गांव पहुंची और अपने मृत मंगेतर के शव के साथ चिता का आरोहण कर सती हो गई।  सरवड़ी व पूरणपुरा गांव के कांकड़ पर उस सती का स्मारक स्वरूप मंदिर बना है। यह मंदिर आज भी अपनी मूकवाणी से क्षत्रिय कन्याओं को सतीत्व व पवित्रता की याद दिलाता है। पास में ही एक गांव लालासरी, जिसके बीचों बीच एक देवरी बनी है, जिसमें लिखा है- ‘‘वि.सं. 1908, बालापोता बलखेण के झुझार जी महाराज रतनसिंह।’’

इस घटना को घटित हुए आज सैंकड़ों वर्ष बीत गये। मोरडूंगा में इन्हीं झुझारजी महाराज का भादवा सुदि द्वादशी को मेला भरता है। ग्यारस की रात को जागरण होता है। मेले में आस-पास के ग्रामीणों के अलावा दूसरे प्रदेशों से श्रद्धालु पहुंचकर अपने आपको धन्य समझते है। राजपूत समाज के साथ ही सभी जातियों के लोग झुझारजी महाराज रतनसिंहजी को लोक देवता के रूप में पूजते है, जात जडुले चढ़ाते है, दहेड़ी चढ़ाते है, वर-वधु गठजोड़े के साथ जात देने आते है। जनमानस को इस पवित्र स्थान के चमत्कारों पर इतना विश्वास है कि वहां मनौतियाँ मांगी जाती है। विश्वास करने वाले बताते है कि यहाँ असाध्य रोगों के रोगी ठीक होकर गए है।

मंदिर में शराबी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है। मोरडूंगा के अलावा रतनसिंह के गांव बलखेण में भी झुझारजी का स्थान बना है। झुझार रतनसिंहजी का चरित्र आज भी हमें अपने कर्तव्यपथ पर चलने की प्रेरणा देता है और भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को देता रहेगा। कहा जाता है कि मंदिर से आज भी कर्तव्य परायण व्यक्तियों को एक ध्वनी सुनाई देती है, कि जो व्यक्ति अपने धर्म के लिए जीवन देता है, उसी की स्मृति में मेले लगते है। झुझारजी महाराज रतनसिंहजी के चमत्कारों से प्रभावित होकर आस-पास के गांव सेवदड़ा, लालासरी, पूरणपुरा, सरवड़ी, मावा सहित कई जगह उनके देवरे बने हुए है।


इस गौरक्षक वीर के शव के साथ उसकी मंगेतर कुंवारी ही सती हो गई थी।

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*केसरिया क्रांतिकारी*

Friday, 17 August 2018

केरोली - बेहतरीन निशानेबाज (एक सत्य घटना जो जिंदा कर दे मरे हुए हौसले को।)


यह कहानी है 1938 की एक हंगरी सेना (Hungarian Army) के जवान की जिसका नाम था केरोली  (Karoly Takacs) । वो एक पिस्तौल शूटिंग का बेहतरीन खिलाड़ी था और उसका सपना भी यह था की वो पिस्तौल शूटिंग (Pistol Shooting) में ओलंपिक (Olympics) में स्वर्ण पदक (Gold Medal) जीते । उसकी मेहनत, लगन और रिकॉर्ड को देखते सबको यह लग भी रहा था की इस बार के 1940 में होने वाले ओलंपिक (Olympics) में यही स्वर्ण पदक (Gold Medal) जीतेगा ।
उसकी वजह यह थी की वो उस हंगरी देश (Hungary) का सबसे बेहतरीन पिस्तौल निशानेबाज़ (Pistol Shooter) था और उसने उस देश (Country) में जितनी भी राष्ट्रीय प्रतियोगिता (National Championship) हुई थी उसको वो जीत चुका था । सिर्फ उसका एक सपना था ओलंपिक (Olympics) में स्वर्ण पदक जितना और वो उस सपने से सिर्फ थोड़ा ही दूर था क्यों की दो साल बाद 1940 में ही ओलंपिक (Olympics) था ।
लेकिन उसके इस सपने पर अचानक से पानी फिर गया, वो एक आर्मी केम्प में अभ्यास कर रहा था उस वक्त एक हादसा हो गया । उसके दाहिने हाथ (Right Hand) में एक हथगोला (Hand Grenade) का विस्फोट हो गया और Karoly का हाथ इतनी बुरी तरह से जल गया की अब उस हाथ से वो कुछ नहीं कर सकता था, उसका वो हाथ एकदम बेकार हो गया, इस हादसे में Karoly का दाहिना हाथ (Right Hand) चला गया ।
मतलब सब ख़तम । जो उसका सपना था वो रातों रात मिट्टी में मिल गया, अगर इस जगह पर हममें से कोई होता तो अपनी किस्मत पे रोता, और हार मान लेता लेकिन यह बहाने आम लोगों के लिए है Karoly के लिए नहीं ।
उसने इतने बड़े हादसे और कुदरत की इस मज़ाक के सामने हार नहीं मानी । उसे तो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जितना ही जितना था, उसका लक्ष्य (Goal) तो एकदम स्पष्ट था उसका मनोबल तो लोहे के तरह मजबूत फौलादी था । वो हार नहीं माना उठ खड़ा हुआ और उसने तय किया कोई बात नहीं इस हादसे में मेरा दाहिना हाथ (Right Hand) चला गया तो क्या हुआ मेरे पास बायां हाथ (Left Hand) तो है, उसने तय किया की वो अब अपने बाएँ हाथ (Left Hand) को दुनिया का सबसे बेहतरीन हाथ बनाएगा (Pistol Shooting Hand) ।
अस्पताल में एक महिना बिताने के बाद जैसे ही उसे अस्पताल से छुट्टी मिली तो वो फिर से अपने मक़सद में लग गया, हां उसने फिर से अपने दाएँ हाथ (Left Hand) से पिस्तौल शूटिंग का अभ्यास शुरू कर दिया । उसे शुरुआत में बहुत दर्द हुआ बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ा लेकिन फिर भी Karoly ने हार नहीं मानी ।
Karoly ने एक साल बहुत जमकर अभ्यास किया और एक साल बाद 1939 में वो वापस आया जहाँ हंगरी (Hungary) में नेशनल चैंपियनशिप हो रही थी उसमे हिस्सा लेने, तब तक किसी को पता नहीं था की Karoly अपने बाएँ हाथ (Left Hand) से अभ्यास कर रहा था । तो जैसे दूसरे प्रतियोगियों (Competitors) ने Karoly को देखा तो सब चौक गए और फिर उन्हें लगा की Karoly यहाँ हमारा हौसला बढ़ाने आया है, तो सब उसका धन्यवाद करने लगे लेकिन सबको तब झटका लगा जब Karoly ने कहा में यहाँ आप लोगों का हौसला बढ़ाने नहीं आपसे मुकाबला करने आया हूँ । आप लोगों से लड़ने आया हूँ ।
वहाँ Karoly का मुकाबला था उन लोगों से जो अपने सबसे अच्छे हाथ से निशाना लगा रहे थे और Karoly अपने बाएँ हाथ (Left hand) से निशान लगा रहा था, बावजूद उसके यह हंगरी के नेशनल चैंपियनशिप Karoly जीत गया और उसकी बहुत तारीफ़ हुई सब हैरान थे की ये कैसे हो सकता है चारों तरफ बस यही चर्चा थी और Karoly रातों रात हीरो बन चुका था ।
लेकिन Karoly वहाँ तक नहीं रुका, उसका तो बचपन से एक ही सपना (Dream) था एक ही लक्ष्य (Goal) था उसे तो दुनिया का सबसे बेहतरीन निशानेबाज़  (World Best Pistol Shooter) बनना था  । इसलिए उसने अब 1940 में होने वाले ओलंपिक का अभ्यास शुरू कर दिया और फिर से सबको लगने लगा था की हां इस बार यही ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतेगा और वो बहुत ही सही तरीके से आगे बढ़ रहा था । लेकिन शायद किस्मत को यह मंज़ूर नहीं था किस्मत ने फिर से अपना पलड़ा बदला और 1940 के ओलंपिक विश्व युद्ध (World War) की वजह से रद्द हो गए ।
उसका सपना अब फिर से धुँधला होता दिख रहा था सबको लगने लगा की अब तो सब ख़तम हो गया लेकिन हार माने ऐसा Karoly था नहीं । उसने कहा कोई बात नहीं यह नहीं तो आने वाले ओलंपिक 1944 में स्वर्ण पदक जीतूँगा और उसने अपनी मेहनत अभ्यास जारी रखा ।
लेकिन किस्मत भी उसका बार बार इम्तिहान ले रहा था, 1944 में विश्व युद्ध (World War) की वजह से फिर से ओलंपिक रद्द हो गए । अब सबने सोच लिया था की Karoly का सपना सपना ही रह जाएगा और वो कभी हक़ीकत नहीं बन पाएगा ।
लेकिन किसी को यह नहीं पता था की Karoly ऐसे हार मानने वालो में से नहीं था, वो तो बना ही था जीत हासिल करने के लिए वो था एक सच्चा योद्धा (Real Fighter), सच्चा विजेता (Winner) उसने फिर से 1948 में होने वाले ओलंपिक की तैयारियाँ करने लगा और इस बार ओलंपिक में भाग लिया । उस समय Karoly की उम्र 38 साल हो गई थी और उसके प्रतिस्पर्धी (Competitors) बहुत ही जवान जोशीले थे । सब अपने बेहतरीन हाथ (Best Hand) से मुकाबला कर रहे थे और Karoly अपने बाएँ हाथ (Left Hand) से, फिर भी Karoly ने उनका मुकाबला किया । और उसने पिस्तौल निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीता । हां उसने कर दिखाया, हां नामुमकिन को भी मुमकिन कर दिखाया और आज उसका सपना सिर्फ सपना नहीं हक़ीकत बन गया ।
पूरी दुनिया हिल गई की यह कैसे हो सकता है लेकिन सिर्फ एक व्यक्ति के अपने हार ना मानने वाले नज़रिये से यह संभव हुआ और Karoly सिर्फ वहाँ तक नहीं रुका उसने 1952 फिर से उसने ओलंपिक में हिस्सा लिया और दोबारा स्वर्ण पदक जीता ।

इस कहानी से शिक्षा मिलती है की सपने कभी खत्म नही होते अगर उन्हें पूरा करने की इच्छा शक्ति को कभी मरने नहीं दिया जाए तो। हमारे अंदर के साहस और निश्चय पर ही हमारे सपने के पुरे होने का भार होता है। 
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*केसरिया क्रांतिकारी* 

Saturday, 14 April 2018

मत छोड़ो दरिंदो को इनकी सजा फांसी हो








क्या लिखूं कैसे लिखूं आज कलम मेरी थर्राती है,
ना जाने क्यूँ फूलों सी बेटी घर से निकलने में घबराती है,
देख रोज रोज होते बलात्कार आँखे शर्म से झुक जाती है,
क्यों है लाचार व्यवस्था इतनी बस यही बात दिल को चुभ जाती है,

उठो शक्तिस्वरूपा कोई तो रानी झाँसी हो,
मत छोड़ो दरिंदो को की अब तुम्हारे हाथो बीच चौराहें इनको फांसी हो...||||

देखो पैसो के बल पर राजनीती का कैसा खेल बना है,
आज अपराधी और मंत्रियो का बड़ा अजीब मेल बना है,
साला कानून तक इन पैसे वालो की रखैल बना है,
सबने मिलकर लूटी इज्जत कुछ ऐसा तालमेल बना है,

बुलंद करो स्वर अपने अहसास हो की तुम भी भारत वासी हो,
मत छोड़ो दरिंदो को की अब तुम्हारे हाथो बीच चौराहें इनको फांसी हो...||||

हालात बिगड़े है कानून बिका है मत तुम इनका इतंजार करो,
कब तक तड़पोगी आखिर क्यूँ तड़पोगी अब तो कुछ प्रतिकार करो,
इज्जत तुम्हारी तुमको ही रक्षा करनी है अब खुद को तैयार करों,
केसरिया क्रांतिकारी है साथ तुम्हारे अब बन रणचंडी तुम दरिंदों का संहार करो,

स्वयं की रक्षा हेतु उठाओं तलवारे जो वर्षों से दुष्टों के खून की प्यासी हो,
मत छोड़ो दरिंदो को की अब तुम्हारे हाथो बीच चौराहें इनको फांसी हो...||||
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            ⛳⛳⛳⛳ केसरिया क्रांतिकारी ⛳⛳⛳⛳


Friday, 30 March 2018

सुनलो ए क्षत्रियों तुम्हारा धूमिल होता केसरिया ध्वज बोल रहा हूँ मैं...।।।।



गगन को छूकर इठलाता था,
क्या होता है लहराना ये दिखलाता था,
धर्म का पालन करना सिखलाता था,
कैसे जीना है क्षत्रिय बन ये हमेशा बतलाता था,
बन्द हो चुके मेरे इतिहास को आज खोल रहा हूँ मैं,
सुनलो ए क्षत्रियों तुम्हारा धूमिल होता केसरिया ध्वज बोल रहा हूँ मैं...।।।।

लाखो योद्धाओं का रक्त मुझमे ही समाया था,
पहन केसरिया बाना वीरों ने रण में युद्ध कौशल दिखलाया था,
ना जाने कितने शत्रुओं के रक्त से उन्ही को नहलाया था,
तब जाकर मैं शान से उस गगन में गर्व से लहराया था,
आज उन्ही वीरों की संतानों के साहस को तोल रहा हूँ मैं,
सुनलो ए क्षत्रियों तुम्हारा धूमिल होता केसरिया ध्वज बोल रहा हूँ मैं...।।।।

अब भी सम्भलों अपनी शक्ति को पहचानों तुम,
पूर्वजों ने जो कि उस केसरिया भक्ति को पहचानों तुम,
मुझमे समाये वीरों के रक्त की कीमत पहचानों तुम,
हो विश्वविजेता अपनी हिम्मत को पहचानों तुम,
तुम्हारे अंदर सो चुके क्षत्रियत्व को आज टटोल रहा हूँ मैं,
सुनलो ए क्षत्रियों तुम्हारा धूमिल होता केसरिया ध्वज बोल रहा हूँ मैं...।।।।

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                                    केसरिया क्रान्तिकारी


Wednesday, 7 March 2018

युवा पीढ़ी के भटकाव के कारण कुँवर चेतन सिंह चौहान की नजर में|


सभी बड़े भाइयों, हमउम्र और छोटे भाइयों को सादर जय माता जी की सा।
 

एक भाईसाब ने पूछा की, "महिलाओं के प्रति घटिया सोच का कारण क्या है
हमारे संस्कार हमारी सोच,हमारी शिक्षा,हमारा सिस्टम,हमारा वातावरण,हमारा खानपान
या हमारा स्कूल/कॉलेज?"

उनके सवाल का जवाब मेरे शब्दों में ये है -

देखिए सभी बिंदु कही ना कही इसके जिम्मेदार है क्योंकि सभी की अपनी एक अहमियत होती है व्यक्ति के चरित्र निर्माण में।

मैं माता पिता के दिये संस्कारों पर कोई उंगली नही उठा रहा क्योंकि इतना मुझे हक नही लेकिन आजके पेरेंट्स अपने बच्चों को सोशल लाइफ से जुड़ने का अवसर तो प्रदान करते है, आधुनिकता से सम्पर्क तो कराते है, लेकिन उन्हें अपने इतिहास, शास्त्रों से परिचित नही करवाते जिसका असर आज की युवा पीढ़ी पर साफ साफ दिखाई देता है। पेरेंट्स टेलीविजन पर पर्दर्शित जोधा अकबर तो दिखा देते है पर साथ मे बैठकर उन्हें ये नही बताते की वास्तव में जोधा अकबर का इतिहास क्या है। फिर वही बेटी या बेटा जब घर की इज्जत लुटवाता है तो सिर पिट लेते है। बस यहीं कमी रह जाती है माँ पिता के संस्कारों में।

हमारा सिस्टम सबसे बेकार हो चला जा क्योंकि यहां संवेदना या संस्कृति कोई मायने नही रखती सिर्फ पैसा और प्रदर्शन मायने रखता है इसलिए सिस्टम तो हर प्रकार से जिम्मेदार है आज के युवाओं के आचरण के लिए।

हमारी सोच भी आज आधुनिकता के दौर में आधुनिक हो चली है फिर वो चाहे नारी सम्मान हो, माता पिता का या बुजुर्गों का सम्मान हो या अन्य कोई भी विषय सभी पर हम अपनी संस्कारित सोच को खोकर आधुनिक तौर पर सोचने लगे है इसलिए कुछ हद तक ये भी जिम्मेदार है।

हमारा वातावरण बेशक घरेलू स्तर पर सही हो परन्तु सबसे ज्यादा असर सोसाइटी के वातावरण का पड़ता है जो आजके समय बहुत हद तक दूषित हो चला है और इसका सीधा सीधा असर मानवीय सोच और समझ पर पड़ा है। हर जगह बलात्कर, छेड़छाड़ आदि घटाएँ आम हो चली है और कहते ह खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदल लेता है तो जैसा आसपास हो रहा है वैसा ही कुछ युवा पीढ़ी अनुसरण कर रहे है और उसके परिणाम सामने है।

हमारे खानपान से क्या असर होता है मैं नही कह सकता क्योंकि खानपान सिर्फ जीभ की तृष्णा ओर पेट की भूख मिटाने को ही होते है।

स्कूल/कॉलेज इत्यादि का माहौल आज सबको पता है मैं खुद स्कूल में जोब करता हूँ और स्कूल में बड़ी क्लास के किशोरों के मन मे नए नए आकर्षण पैदा होना लाजमी है लेकिन उन्हें सही गाइडेंस नही मिल पाता जिसकी वजह से इस समय ये भटक भी ज्यादा रहे है। स्कूल कॉलेज आज पढाई कम और अपनी शान ओर शौकत को दिखाने जरिया बन चुका जा जिसकी वजह से युवा पीढ़ी पर बुरा असर पड़ रहा है और इसके परिणाम आपके सामने है।


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उम्मीद है अपने  शब्दों में मैंने जो भी कहा आप समझ पाएंगे।

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केसरिया क्रान्तिकारी


Tuesday, 20 February 2018

गाँव की यादें

                           
  
आज सुनाता हूँ कुछ भूली बिसरी मेरे गाँव की बातें,
मेरे गाँव के वो सुनहरे दिन वो चांदनी राते,

वो सबका मिलकर चौपालों पर बैठना,
छोटी छोटी बातों पर दोस्तों से ऐंठना,
हर त्यौहार पर सबका एक हो जाना,
मिलकर एक परिवार बन जाना,
साथ में तीज त्यौहार मनाना,
वही था वास्तव में गाँव का असली खजाना,
लाती थी किसी की बुआ किसी की मौसी साथ अपने खुशिओं की सौगाते,
आज सुनाता हूँ कुछ अच्छी भूली बिसरी मेरे गाँव की बातें,

रोज शाम दादी के साथ मंदिर जाना,
मंदिर तो था बस दादी के साथ घुमने जाने का एक बहाना,
खेतों पर जाकर वो कुऐ पर नहाना,
होकर तरो ताजा फिर पुरे गाँव में हुडदंग मचाना,
रोज रात को दादी का अलग अलग कहानियां सुनना,
कहानी सुनते सुनते दादी की गोद में ही सो जाना,
काहनी का थी वो बस दादी के प्यार की अनुपम बरसात थी,
धरती के उपर स्वर्ग हो जैसे कुछ ऐसी मेरे गाँव की बात थी.......||||||||||
 ☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺☺
Chiksa