*गुजरा जमाना - बदलाव की हकीकत*
चलो आज एक हकीकत सुनाई जाए,
कुछ बीते जमाने की बाते बताई जाये,
कुछ असलियत इस बदलते वक्त की तुम्हे दिखाई जाए,
कुछ बातें पुरानी आज तुम्हे याद दिलाई जाए,
एक ऐसा गुजरा जमाना था,
जब सब यारो के बैठने का एक ठिकाना था,
रोज एक ही थाली में भाइयों का खाना था,
खाना क्या था साथ बैठकर बतलाने का एक बहाना था,
गांव के बीचों बीच एक चौपाल थी,
जहां से बनती राजीनीति की सारी चाल थी,
रोज शाम को चिलम तम्बाकू का आभास था,
वही तो गांव में बुजुर्गों के होने का अहसास था,
रोज गौधुली वेला में गांव के युवा होते एक थे,
कुछ होती थी हंसी ठिठोली कुछ बनते कार्यक्रम नेक थे,
सभी युवाओं का बस एक सपना था,
की ये गांव नही एक पूरा परिवार अपना था,
लिखने को तो ना जाने और क्या क्या बातें लिख दूँ,
वो खेतों में कुएं पर नहाना ओर खेत में सोते हुए वो चांदनी राते लिख दूँ,
वो आसपड़ोस की भाभी का प्यार या घर के बुजुर्गों से पड़ती मार लिख दूँ,
या पड़ोसियों का अपनापन सगे सम्बन्धी जैसा व्यवहार लिख दूँ,
लिखने को बहुत कुछ है यार पर पढ़ने का वक्त कहाँ है,
स्वाभिमान पर उबाल खाता था जो वो अब रक्त कहाँ है,
वक्त की मार ने सोच बदली बदल दिए रहने के तरीके,
अब अपना घर आबाद रहे भाई चाहे बर्बाद रहे यही है जीने के सलीके...।।।।।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊
*कुँवर चेतन सिंह चौहान (Chiksa)*
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