Wednesday, 15 May 2019

अकबर को बताकर महान तुम्हे तनिक लाज न आई




जिसके नाम से अकबर सपनो में डर जाता था,
एक पड़े भाला तो भीमकाय शत्रु तुरन्त मर जाता था,
जिसकी गर्जना से पूरा आकाश शौर्य से भर जाता था,
वो नाम वीर शूरमा महाराणा कहलाता था,

 महाराणा हारें थे ये बात तुम्हे किसने बताई है,
अकबर महान बताते शिक्षामंत्री तुम्हे तनिक लाज न आई है..।।


हिंदुस्तानी होकर ना जाने क्यों मुगल तुम बन रहे हो,
आखिर किस बात का है घमंड किस अहम में तन रहे हो,
गलत पढ़ाकर आखिर कैसे शिक्षित युवा जन रहे हो,
आखिर क्यों विधर्मी होकर राष्ट्रवादियों से ठन रहे हो,

खुदके शूरमाओं पर उठा रहे उंगली कैसी शिक्षा पाई है,
अकबर महान बताते शिक्षामंत्री तुम्हे तनिक लाज न आई है..।।


जिसदिन रक्त राणा के वंशजों का फिरसे उबाल खायेगा,
पछताओगे तुम कुछ न तुम्हे समझ मे आएगा,
माफी मांगो महाराणा से नतमस्तक हो प्रणाम करो,
कभी तो पढाओं सच्चा इतिहास जाकर शिक्षा व्यवस्था में सुधार करो,


महाराणा पर उंगली उठाकर तुमने राजस्थानी मिट्टी है लजाई,
अकबर महान बताते शिक्षामंत्री तुम्हे तनिक लाज न आई है..।।।।

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*कुँवर चेतन सिंह चौहान*

Sunday, 14 April 2019

फक्र-ए-हिन्द लेफ्टिनेंट जनरल हनूत सिंह



राजस्थान में बाड़मेर जाते वक़्त जोधपुर से लगभग 80 किलोमीटर के फ़ासले पर एक शहर है-बालोतरा. और इससे कुछ मील दूर है जसोल. विशुद्ध राजस्थानी संस्कृति वाले जसोल में आप अगर किसी बच्चे से भी पूछें कि स्वर्गवासी हुकम हनुत सिंह की ड्योढ़ी कहां है तो वह हाथ पकड़ आपको वहां छोड़ आएगा.


कौन हनुत सिंह? यह पूछने वाले यकीनन भारतीय सेना के सबसे गौरवशाली अफ़सरों में से एक लेफ्टिनेंट जनरल ‘हंटी’ उर्फ़ हनुत सिंह से परिचित नहीं है. वे भारतीय सेना के उस ‘भीष्म पितामह’ से वाबस्ता नहीं हैं जिसने सेना में अपना सर्वस्व झोंकने के लिए विवाह नहीं किया. वे उस अधिकारी बारे में नहीं जानते जिसे भारतीय सेना का सबसे कुशल रणनीतिकार कहा जाता है, और वे उस हनुत सिंह को नहीं जानते जो गौरवशाली टैंक रेजिमेंट 17 पूना हॉर्स के कमांडिंग ऑफ़िसर (सीओ) थे. जो नहीं जानते वे अब याद रखें कि सन 1971 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान की सेना ने 17 पूना हॉर्स को ‘फ़क्र-ए-हिन्द’ का ख़िताब दिया था. हैरत की बात नहीं, जनता ही नहीं सरकारें भी अब हनुत सिंह को भूल चुकी हैं.

भारतीय सेना के 12 सबसे चर्चित अफ़सरों की जीवनी ‘लीडरशिप इन द आर्मी’ के लेखक रिटायर्ड मेजर जनरल वीके सिंह लिखते हैं, ‘अगरचे कोई एक लफ्ज़ है जो हनुत सिंह के बारे में समझा सके तो वह है- सैनिक’. वे आगे लिखते हैं कि हनुत सेनाध्यक्ष तो नहीं बन पाए पर लेफ्टिनेंट कर्नल रहते हुए भी वे एक किंवदंति बन गए थे.

ऐसा 1971 में हुआ था जब हनुत सिंह 17 पूना हॉर्स के सीओ थे. बैटल ऑफ़ बसंतर की उस मशहूर लड़ाई में दुश्मन से घिर जाने के बावजूद अपने हर जूनियर ऑफ़िसर को एक इंच भी पीछे हटने के लिए मना कर दिया था. इसी लड़ाई में सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को अद्मय साहस का परिचय देने पर मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला था. इसी जंग में शानदार नेतृत्व के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल हंटी को महावीर चक्र मिला था.


पर यहां ज़िक्र 1971 का नहीं, बल्कि 1986 का है जब भारतीय सेना इतिहास में सबसे बड़े युद्धाभ्यास ‘ऑपरेशन ब्रासटैक्स’ के चलते पाकिस्तान पर लगभग हमला करने से कुछ कदम ही पीछे रह गई थी और इसमें हंटी की अहम भूमिका थी.

ऑपरेशन ब्रासटैक्स

एक फ़रवरी 1986 को जनरल के सुंदरजी ने भारतीय सेना की कमान संभाली और राजस्थान से लगी हुई पाकिस्तानी सीमा पर तीनों सेनाओं का संयुक्त युद्धाभ्यास कराने की योजना बनाई. सुंदरजी बदलते दौर की युद्ध शैलियों, एयरफोर्स की एयर असाल्ट डिविज़न और रीऑर्गनाइस्ड असाल्ट प्लेन्स इन्फेंट्री डिविज़न को आज़माना चाहते थे. इस संयुक्त युद्धाभ्यास की कमांड लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह के हाथों में सौंपी गई. इससे पहले एक उच्च स्तरीय मीटिंग में हनुत सुंदरजी से किसी बात पर दो-दो हाथ कर चुके थे. तब फ़ौज में यह बात उड़ गई कि हनुत अब रिटायरमेंट ले लेंगे पर सुंदरजी नियाहत ही पेशेवर अफ़सर थे, उन्होंने हनुत का सुझाव ही नहीं माना, उन्हें प्रमोट भी किया था.

तयशुदा प्लान के तहत 29 अप्रैल, 1986 को हनुत ने भारतीय सेना की सुप्रतिष्ठित हमलावर 2 कोर की कमान संभाली और इसे लेकर राजस्थान की सीमा पर आ डटे. एक आंकड़े के मुताबिक़ लगभग डेढ़ लाख भारतीय सैनिक सीमा पर जमा हुए थे. हनुत ने अब तक जो भी सीखा था, उसे इस युद्धाभ्यास में इस्तेमाल किया. रोज़ नए अभ्यास कराये जाते, नक़्शे, सैंड-मॉडल बनाकर हमले की प्लानिंग की जाती और जवानों को गहन ट्रेनिंग दी जाती.

ब्रास टैक्स के कई चरण थे. जब यह युद्धाभ्यास चौथे चरण में पहुंचा तो उनकी कोर को उस प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ा जो अब तक नहीं हुआ था. भारत के तीखे तेवर देखकर पाकिस्तान में हडकंप मच गया. पाकिस्तानी सेना हनुत सिंह का युद्ध कौशल 1971 में देख चुकी थी जब बसंतर की लड़ाई में हनुत ने उनके 60 टैंक मार गिराए थे. इस युद्धाभ्यास को सीधे तौर पर संभावित भारतीय हमला समझा गया जिसकी वजह से पाकिस्तानी सरकार के पसीने छूट गए थे. कहते हैं कि पाकिस्तानी संसद में विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री रोज़ाना बयान देकर देश को भारतीय सैन्य ऑपरेशन की जानकारी देते थे.

इस ऑपरेशन ने अमेरिका तक की नींद उड़ा दी थी. पश्चिम के डिप्लोमेट्स भारत की पारंपरिक युद्ध की ताक़त से हैरान रह गए थे. उनके मुताबिक़ यह युद्धाभ्यास नाटो फ़ोर्सेस के अभ्यासों से किसी भी प्रकार कमतर नहीं था. बल्कि, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दक्षिण एशिया में यह तब तक का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास था. पाकिस्तान ने ट्रैक 2 डिप्लोमेसी का इस्तेमाल किया और बड़ी मुश्किल से इस युद्धाभ्यास को रुकवाया.

सुंदरजी इसे सिर्फ़ एक अभ्यास की संज्ञा दे रहे थे पर जानकारों के मुताबिक़ इस युद्धाभ्यास का असल मकसद कुछ और ही था. इसके रुकने पर हनुत और उनके अफ़सर बड़े मायूस हुए. वीके सिंह लिखते हैं कि हनुत का पिछला रिकॉर्ड देखते हुए यकीन से कहा जा सकता है कि अगर हनुत को इजाज़त मिल जाती तो वे दोनों मुल्कों का नक्शा बदल देते.

सिक्किम में वीआईपी कल्चर बंद कर दिया

यह क़िस्सा 1982 का है जब हनुत सिंह मेजर जनरल बने और सिक्किम में तैनात 17 माउंटेन डिविज़न की कमान उनके हाथों में आई. सिक्किम के तत्कालीन गवर्नर होमी तल्यारखान की इंदिरा गांधी के साथ नज़दीकी के चलते सेना के उच्चाधिकारी उनकी हाज़िरी में खड़े रहते. उन दिनों जो भी सरकारी अधिकारी सिक्किम घूमने आते, वे सेना की मेहमाननवाज़ी का लुत्फ़ उठाते. हनुत ने यह सब बंद करवा दिया. बल्कि उन्होंने आने वाले सरकारी सैलानियों से सरकारी शुल्क वसूलना शुरू कर दिया.

20 साल बनाम एक साल

सिक्किम में फॉरवर्ड पोस्टों पर सेना का हाल ख़राब था. न रहने के लिए मुकम्मल इंतज़ाम था न बिजली की व्यवस्था थी. हनुत सिंह ने सेना के उच्चाधिकारियों को पत्र लिखकर हालात सुधारने की बात कही तो उनके रिपोर्टिंग ऑफ़िसर ने मना कर दिया. हारकर, जब उन्हें कहीं से भी कोई सहायता नहीं मिली तो उन्होंने लकड़ियों से सैनिकों के लिए बैरक और शौचालय बनवाए. वहां पर जनरेटर लगवाए.

कुछ साल बाद जब उनका तबादला कहीं और हो गया तो विदाई के समय सैनिकों ने उन्हें एक मेमेंटो दिया जिस पर लिखा हुआ था, ‘जितना सैनिकों के लिए बाक़ी अफ़सरों ने 20 साल में किया है, आपने एक साल में कर दिखाया’. उनका मानना था कि एक सैनिक जितना अपने अफ़सर के लिए कुर्बानी देता है, उतना अफ़सर उसके लिए नहीं करते.

जूनियर अफ़सरों के मां-बाप हंटी से परेशान थे

हनुत सिंह का मानना था कि सैनिक अगर शादी कर लेता है तो परिवार सेवा देश सेवा के आड़े आती है. लिहाज़ा, वे आजीवन कुंवारे रहे. वे अपने जूनियर अफ़सरों को भी ऐसी ही सलाह देते. एक समय ऐसा भी आया कि उनकी यूनिट में काफ़ी सारे जवान और अफ़सर उनके इस फ़लसफ़े से प्रभावित होकर कुंवारे ही रहे. इस बात से जूनियर अफ़सरों के मां-बाप हनुत सिंह से परेशान रहते. कइयों ने शिकायत भी की पर उनकी सेहत पर इस तरह की शिकायतों का असर नहीं होता था.

बेबाकी

1971 की लड़ाई के बाद जब उन्होंने अपनी रिपोर्ट पेश की तो उसमें लिख दिया कि सेना के बड़े अफसर जंग ख़त्म होने से कुछ ही घंटे पहले बॉर्डर पर आये थे. इस बात से उनके उनके कई वरिष्ठ अफ़सर उसे नाराज़ हो गए पर हनुत को अपनी काबलियत का बख़ूबी अंदाज़ा था जिसके चलते वे किसी की परवाह नहीं करते. कई बार तो बात यहां तक बढ़ जाती कि उनके अफ़सर अपनी फ़जीहत रुकवाने के लिए बैठकें ख़त्म कर देते थे.

1971 में उनके कमांडिंग ऑफ़िसर अरुण श्रीधर वैद्य (बाद में सेनाध्यक्ष) ने एक बार जंग के दौरान उनसे हालचाल मालूम करने की कोशिश की तो हनुत ने कहलवा दिया कि वे ‘पूजा’ कर रहे हैं और अभी बात नहीं कर सकते!’ दरअसल, जंग के दौरान वे किसी भी प्रकार का दख़ल बर्दाश्त नहीं करते थे. हनुत सिंह की काबिलियत का अंदाज़ा से बात से भी लगाया जा सकता है कि भारत में टैंकों की लड़ाई पर उनके लिखे दस्तावेज़ आज भी इंडियन मिलिट्री अकादमी में पढ़ाये जाते हैं.

इतनी काबिलियत के बावजूद हनुत सिंह सेनाध्यक्ष नहीं बनाए गए. कहते हैं कि जब उन्हें यह बात मालूम हुई तो वे बड़े ही धीर स्वर में बोले ‘यह मेरा नहीं देश का नुकसान है कि उन्होंने काबिलियत के बजाए किसी और चीज को प्राथमिकता दी है.’ यह तय है कि हर क़ाबिल अफ़सर सेनाध्यक्ष नहीं बनता और हर सेनाध्यक्ष क़ाबिल नहीं होता।

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साभार :- सत्याग्रह




Friday, 29 March 2019

मेरा राजस्थान




जहां के रेतीले धोरे भी सोना उपजाया करते है,
जहां के वीर शुरमे रणभेरी वचन निभाया करते है,
जहां शीश कटने पर धड़ लड़ जाया करते है,
प्रेम निशानी हेतु निज शीश तक कटवाया करते है,

अगले जन्म मुझे अगर जीवनदान मिले,
देश मिले भारत मेरा और मातृभूमि यही राजस्थान मिले..।।


जहां बचपन से ही त्याग बलिदान सिखाया जाता है,
जहां पालने में मातृभूमि का महत्त्व बताया जाता है,
जहां प्राणों से बढ़कर भी वचन निभाया जाता है,
प्रण की रक्षा हेतु एक राजा जंगल मे जीवन बिताया करता है,

हे ईश्वर अगले जन्म यही माता पिता और उनका नाम मिले,
देश मिले मुझे भारत मेरा ओर धरती राजस्थान मिले..।।

जिस भूमि पर पृथ्वीराज और वीर महाराणा ने जन्म लिया,
अकबर जैसे मुगलों का भी दम्भ चकनाचूर किया,
 जहां मीरा बाई जैसी भक्ति थी,
जहर पी लिया जिसने वो अद्भुत नारी शक्ति थी,

अगले जन्म मुझे यही वीरों की धरा महान मिले,
देश मिले मुझे भारत मेरा और मातृभूमि राजस्थान मिले..।।

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राजस्थान दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।

कुँवर चेतन सिंह चौहान

Monday, 25 March 2019

मैं भारत के किसानों का दर्द सुनाने आया हूँ..।।


भूख मिटाई हमारी वो हम सबके भगवान बने,
पूरे विश्व के पटल पर भारत की पहचान बने,
जिसने लुटा दिया जीवन अपना देश की भूख मिटाने को,
लहू से सींचकर धरती वो धरतीपुत्र किसान बने..।।

आज उन्ही किसानो की दशा तुम सबको बताने आया हूँ
लाचार हुए किसान का दर्द तुम्हे सुनाने आया हूँ..।।


भूलकर परिवार अपना जो दिन रात हल चलाया करते है,
औरों का पेट भरने की खातिर खुद भूखे सो जाया करते है,
जिनके पांवों के छाले अक्सर लहू बहाया करते है,
उन किसान को आखिर क्यों राजनेता तरसाया करते है..।।

राजनीति के कारण बदहाल हुए किसान तुम्हे दिखाने आया हूँ,
आज धरती के भगवान का दर्द तुम्हे सुनाने आया हूँ..।।

जिसदिन भारत के ये किसान आपस मे मिल जाएंगे,
क्रोध के पुष्प जब इनके खेतों में खिल जाएंगे,
लुट चुके किसानों के जिसदिन त्रिनेत्र खुल जाएंगे,
उसदिन एक नही हजारों सिंहासन हिल जाएंगे..।।

तुम्हारी भूल का भयानक परिणाम समझाने आया हूँ,
मैं किसानों के दर्द का शोर सुनाने आया हूँ..।।

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जय जवान - जय किसान
कुँवर चेतन सिंह चौहान

Saturday, 9 March 2019

शौर्य का अहसास



बहुत दिनों के बिजी शेड्यूल के बाद थोड़ा सा वक्त टीवी देखने को मिला तो अनायास ही एक चेनल पर पद्मावत मूवी आ रही थी। मूवी अपने अंतिम चरण में थी और युद्ध व जौहर की तैयारी चल रही थी।

पद्मावत मूवी का नाम सुनते ही पिछले साल हुए दंगों, राजपूत आक्रोश व फ़िल्म के विरोध की छवि दिमाग मे घुमने लगती है। उन विरोधों में हम भी शामिल थे। रक्त पत्र से लेकर खुल्ला विरोध सबमे अगुवाई की। फिर भी फ़िल्म का रिलीज होना व रिलीज के बाद समर्थन व विरोध में कमेंट आना इन सबका दौर चालू हुआ। लगभग एक साल निकल गया मूवी देखने का मन ही नही हुआ फिर भी जब कल जौहर की तैयारी को देखा तो अपने आप ही आंखे उसपर टिक गई। बेशक फ़िल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुई जिसको लेकर मन मे क्रोध था लेकिन क्षत्राणियों के जौहर को यूँ फिल्मी पर्दे पर देखकर ना जाने क्यों आंखे उसपर ही अटक गई। दिमाग इतिहास में हिचकोले खाने लगा और अपने आप उस समय के हुए उस जौहर की तस्वीर दिमाग मे उभरने लगी।

जौहर कुंड की ओर बढ़ती क्षत्राणिया ओर जय भवानी के लगे नारे देखकर रोंगटे खड़े हो गए। दिमाग मे एक ही ख्याल आने लगा कि जिस दृश्य को मात्र फिल्मी रूप में देखने पर रोंगटे खड़े होने लगे वास्तविकता में वो दृश्य कितना ओजपूर्ण रहा होगा। क्या माहौल रहा होगा उस समय चितौड़ दुर्ग का जब सभी क्षत्राणियां उस दहकती जौहर अग्नि की ओर आगे बढ़ रही थी।


उस समय की कल्पना मात्र से एक ऐसे गर्व का अहसास होने लगा जो सिर्फ राजपूतों में ही हो सकता है। उस अहसास को शब्दों में वर्णित नही किया जा सकता। हम किस कुल से सम्बन्ध रखते है क्या हमारी संस्कृति है और किस प्रकार हमने उन्हें जीवंत रखा है।

इन सब चिजो से जुड़ाव होना आवश्यक है। वर्तमान समय के जुड़ाव व जानकारी के अभाव में उन सांस्कृतिक मूल्यों को हम खोने लगे है जिनके लिए पूर्वजों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है।

हमे खुद को व आने वाली पीढ़ी को अपने इन गौरवशाली इतिहास से और अपने संस्कृति से जोड़ना होगा ताकि हम इन बेशकीमती मूल्यों को खोने से बचा सके।

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क्षत्रिय धर्म युगे युगे

कुँवर चेतन सिंह चौहान
ठिकाना शाहजहांपुर (अलवर) राजस्थान

Monday, 18 February 2019

मैं हिन्द के शेरों का शौर्य सुनाने आया हूँ




भारतीय सेना को समर्पित एक छोटी सी रचना।
शीर्षक :- मैं हिन्द के शेरों का शौर्य सुनाने आया हूँ,



सन सैंतालीस से जो हुआ शुरू वो किस्सा तुम्हे बतलाता हूँ,
आओ आज तुम्हे मैं हिन्द की सेना का शौर्य दिखलाता हूँ,
वीरों की वीरता का एक एक बिंदु तुमझे समझाता हूँ,
अमर वीरता के शोणित से अंतर्मन को पिघलाता हूँ,

सेना ने जो करे स्थापित मैं वो कीर्तिमान बताने आया हूँ,
आज  हिन्द के शेरों का शौर्य सुनाने आया हूँ..।।

भारत के वीरों की वीरता को ये दुश्मन उस वक्त झेंप गए,
अपने झूठे वीरता के चोले को उतार जमीन पर फेंक गए,
दुनिया ने भी माना था लोहा कारगिल का,
जब सवा लाख सशस्त्र पाकिस्तानी घुटने अपने टेक गए,

मैं उसी विजय की आज तुम्हे याद दिलाने आया हूँ,
आज हिन्द के शेरों का शौर्य सुनाने आया हूँ..।।

ये वही सेना है जिससे पाकिस्तान पूरा थर्राता है,
जिसके आगे खुद सेनापति बाजवा नतमस्तक हो जाता है,
देख शौर्य वीरों का काली का खप्पर भी भर जाता है,
वीर अब्दुल हमीद से टकराकर अमरीकी टैंक मिट्टी में मिल जाता है,

मैं उन्ही वीरों के चरणों में शीश झुकाने आया हूँ,
आज हिन्द के शेरों का शौर्य सुनाने आया हूँ..।।

मत छेड़ो शेरों को कि अबके मौत तुम्हारी पक्की है,
ये हिन्द की सेना है ना समझ युद्ध मे कच्ची है,
पाकिस्तान मिट जाएगा नक्शे से बात ये मेरी सच्ची है,
आकर चरण चुम लो तुम भारत के यही बात तुम्हारे लिए अच्छी है,

मैं देश के वीरों के प्रति अपना फर्ज निभाने आया हूँ,
मैं हिन्द के शेरों का शौर्य सुनाने आया हूँ..।।

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

जय हिंद
जय भारत

कुँवर चेतन सिंह चौहान
ठिकाना शाहजहांपुर

Friday, 15 February 2019

अब तो सेना के हाथ खोल दो मोदी जी


पुलवामा हमले के बाद हर भारतीय के आक्रोश को व्यक्त करती आपके छोटे भाई कुँवर चेतन सिंह चौहान की एक रचना :-

शीर्षक  -  अब तो सेना के हाथ खोल दो मोदी जी

ना जाने कितने वीरों को ये मौत की नींद सुला चुकी,
आखिर क्यों ये राजनीति महाराणा वीर शिवाजी को भुला चुकी,
देखो तुम्हारी ये खामोशी पूरे देश को रुला चुकी,
एकबार फिर आतंकी हरकत घाटी को हिला चुकी,

अब तो वीर भगत सिंह की वाणी में तुम भी कुछ बोल दो मोदी जी,
केवल एक बार ही सही सेना के हाथ खोल दो मोदी जी..।।

देखो दुष्ट पापियों ने कैसा ये अत्याचार किया,
पीठ के पीछे हमारे  शेरों पर धोखे से वार किया,
एकबार फिर से इन जिहादियों ने इंसानियत को शर्मसार किया,
देश रक्षा में जा रहे सैनिकों का निर्मम संहार किया,

अपनी भुजाओं के बल पर इन दुष्टों को तोल दो मोदी जी,
एकबार ही सही लेकिन सेना के हाथ खोल दो मोदी जी..।।

बहुत हो गयी दोस्तीनीति इसको यहीं विराम करो,
अगर अब भी मित्रता दिखलाओ तो तुम भी घर मे आराम करो,
देश रक्षा हेतु अब कुछ कठोर निर्णय का एलान करो,
सबसे पहले इन आतंकिओं का जीना तुम हराम करो,

बजे बिगुल अब युध्द का रण का बजने दो ढोल मोदी जी,
कि बस अबके सेना के हाथ खोल दो मोदी जी..।।।।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
*कुँवर चेतन सिंह चौहान*
*ठिकाना - शाहजहांपुर*