बहुत दिनों के बिजी शेड्यूल के बाद थोड़ा सा वक्त टीवी देखने को मिला तो अनायास ही एक चेनल पर पद्मावत मूवी आ रही थी। मूवी अपने अंतिम चरण में थी और युद्ध व जौहर की तैयारी चल रही थी।
पद्मावत मूवी का नाम सुनते ही पिछले साल हुए दंगों, राजपूत आक्रोश व फ़िल्म के विरोध की छवि दिमाग मे घुमने लगती है। उन विरोधों में हम भी शामिल थे। रक्त पत्र से लेकर खुल्ला विरोध सबमे अगुवाई की। फिर भी फ़िल्म का रिलीज होना व रिलीज के बाद समर्थन व विरोध में कमेंट आना इन सबका दौर चालू हुआ। लगभग एक साल निकल गया मूवी देखने का मन ही नही हुआ फिर भी जब कल जौहर की तैयारी को देखा तो अपने आप ही आंखे उसपर टिक गई। बेशक फ़िल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुई जिसको लेकर मन मे क्रोध था लेकिन क्षत्राणियों के जौहर को यूँ फिल्मी पर्दे पर देखकर ना जाने क्यों आंखे उसपर ही अटक गई। दिमाग इतिहास में हिचकोले खाने लगा और अपने आप उस समय के हुए उस जौहर की तस्वीर दिमाग मे उभरने लगी।
जौहर कुंड की ओर बढ़ती क्षत्राणिया ओर जय भवानी के लगे नारे देखकर रोंगटे खड़े हो गए। दिमाग मे एक ही ख्याल आने लगा कि जिस दृश्य को मात्र फिल्मी रूप में देखने पर रोंगटे खड़े होने लगे वास्तविकता में वो दृश्य कितना ओजपूर्ण रहा होगा। क्या माहौल रहा होगा उस समय चितौड़ दुर्ग का जब सभी क्षत्राणियां उस दहकती जौहर अग्नि की ओर आगे बढ़ रही थी।
उस समय की कल्पना मात्र से एक ऐसे गर्व का अहसास होने लगा जो सिर्फ राजपूतों में ही हो सकता है। उस अहसास को शब्दों में वर्णित नही किया जा सकता। हम किस कुल से सम्बन्ध रखते है क्या हमारी संस्कृति है और किस प्रकार हमने उन्हें जीवंत रखा है।
इन सब चिजो से जुड़ाव होना आवश्यक है। वर्तमान समय के जुड़ाव व जानकारी के अभाव में उन सांस्कृतिक मूल्यों को हम खोने लगे है जिनके लिए पूर्वजों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है।
हमे खुद को व आने वाली पीढ़ी को अपने इन गौरवशाली इतिहास से और अपने संस्कृति से जोड़ना होगा ताकि हम इन बेशकीमती मूल्यों को खोने से बचा सके।
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क्षत्रिय धर्म युगे युगे
कुँवर चेतन सिंह चौहान
ठिकाना शाहजहांपुर (अलवर) राजस्थान
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