Wednesday, 15 November 2017

आखिर पद्मावती का विरोध क्यों?


बॉलीवुड का पुराना इतिहास है कि उसने हमेशा एक राजपूत जाती के विरुद्ध दुष्प्रचार किया है। एक सुनियोजत ढंग से फिल्मो में ठाकुरों को गुंडा दिखाकर, अत्याचारी दिखा कर एक गौरवशाली व ऐतिहासिक जाती को जो हिन्दू धर्म की सदा से रक्षक रही है उसे बदनाम कर हिन्दू धर्म को अपमानित किया है। इन फिल्मी भाँडो ने मात्र पैसे कमाने के उद्देश्य से हिन्दू धर्म के देवी देवताओं तक का समय समय पर मजाक बनाया। शुद्ध इतिहास के साथ छेड़छाड़ करते हुए ना जाने कितने शूरवीरों को उनके यश को अपमानित किया है। अपने उसी इतिहास को दोहराते हुए अब संजय लीला भंसाली नामक भांड राजस्थान ही नही अपितु पूरे भारत वर्ष के सम्मान, शौर्य, आभा के साथ खिलवाड़ करने के उद्देश्य से सती माता पद्मावती पर फ़िल्म बना रहा है। इस फ़िल्म के माध्यम से भंसाली  सती माता पद्मावती को अलाउदीन खिलजी के प्रेमिका के रूप में दर्शाकर ना केवल इतिहास के साथ बल्कि राजपूत समाज, हिन्दू समाज की भावनाओं  व देश की महिलाओं की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने का प्रयत्न कर रहा है।

सती माता पद्मावती जिन्होंने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए 16 हजार नारिओं के साथ जौहर किया ताकि खिलजी उनकी मृत देह तक को ना छू सके। ऐसी महारानी का उसी खिलजी से झूठा प्रेम प्रसंग दिखाकर भंसाली ने वर्षों से सो रहे समाज को पुनः जगा दिया हैं।

आज जगह जगह हो रहे विरोध प्रदर्शन के मूवी के कारण नही उपजे बल्कि वर्षों से वर्ग विशेष के खिलाफ चली आ रही साजिश के विरुद्ध आक्रोश के कारण उपजे है      इस विरोध व आक्रोश को हवा मिली पद्मावती मूवी में सती माता का गलत चित्रण करने से।

कहते है स्प्रिंग को जितना दबाया जाता है व उतनी तेजी से ही वार करती है ठीक उसी प्रकार राजपूत समाज के आक्रोश व धैर्य को हर पल दबाया गया लेकिन अब वो दबने वाली सीमा टूट चुकी है और इसकारण अब जो आक्रोश व विरोध प्रशाशन व बॉलीवुड को झेलना पड़ेगा उसके परिणाम निश्चित रूप से इन दोनों के लिये ही घातक होंगे।

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               *केसरिया क्रांतिकारी*

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