अरे!यह राजा सनकी और आत्ममुग्ध है।भला ऐसी भी क्या?जिद जिसका कोई आधार ही नही है।जिस रेगिस्तान को प्यासा रहने का श्राप लगा हो उसे यह मीठे पानी से नहलायेगा....
यह भला कैसे सम्भव है.
तभी लोगो ने एक दुर्लभ दृश्य देखा और अपने प्रजावत्सल राजा की जय जयकार करने लगे.
जिस फोटोग्राफर ने वह दुर्लभ तश्वीर कैद की वह आज भी बीकानेर संग्रहालय में रखी हुई है और मेरी दृष्टि में बीसवीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण तश्वीर में से एक है।उस तश्वीर में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड इरविन उद्घाटन कर रहे है।महामना पंडित मदनमोहन मालवीय पुरोहित बनकर मंत्रोच्चारण कर रहे है और उस राजा के हाथ मे हल है जिसने अपनी प्रजा को पानी के संकट से मुक्ति दिलाने के लिए असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया.
तभी लोगो ने कहा कि जिस रियासत का राजा अपनी प्रजा के लिए खुद मजदूर बन जाये उसका मनोरथ पूर्ण होने से स्वम् ब्रह्मा भी नही रोक सकते.
उस राजा का पुरा नाम था हिज हाइनेस महाराजाधिराज राज राजेश्वर नरेन्द्र शिरोमणि केसर-ए-हिंद महाराजा श्री गंगा सिंह बहादुर रियासत ऑफ बीकानेर.
राजा तो छोटी रियासत के थे लेकिन रुतबा बड़ा था इतना बड़ा की दुनिया के सुपर लीडर के साथ डिनर टेबल पर बैठते थे।राजनीतिज्ञ इतने बड़े थे कि पेरिस शांति सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया बहादुर इतने की प्रथम विश्व युध्द में ओटोमन सम्राज्य को टक्कर दे दी,रहीश भी उस हद के की जब लंदन जाते तो वहां का अभिजात्य वर्ग पलक पावड़े बिछाकर स्वागत करता।बात में वजन इतना होता कि सम्राट जॉर्ज पंचम भी उनकी बात को नही टालते दिलेर इतने की महामना पंडित मदनमोहन मालवीय तारीफ करते नही थकते.
इतिहास में कुख्यात छप्पनिया अकाल ने मारवाड़ की कमर तोड़ कर रख दी तो राजा ने पूरा राजकोष प्रजा पर लुटा दिया लेकिन वह प्रयास राजा को काफी नही लगा और अब राजा ने रेगिस्तान में ही एक नहर लाने की जिद कर डाली।अंग्रेजो से नजदीकियां थी उसका फायदा उठाकर पंजाब से सतलुज का पानी लाया गया पानी को तरसती मारवाड़ की धरती ने पहली बार मीठा पानी चखा और राजा की कलयुग के भगीरथ के नाम से ख्याति हुई.
पंडित मदनमोहन मालवीय का गंगनहर के उद्घाटन कार्यक्रम में पुरोहित बनने की भूमिका भी एक दिलचस्प घटना से लिखी गई।उस समय पंडित जी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के लिए देशभर के राजाओं के पास जाकर चंदा इकठ्ठा कर रहे थे और इसी सिलसिले में पंडित जी का बीकानेर पधारना हुआ।राजा सुबह कर्ण की बेला में दिल खोलकर दान दिया करते थे तभी उस दिन कतार में पंडित जी को देखा तो राजा चकित रह गए।पंडित जी से पधारने का प्रयोजन पूंछा तो पण्डित जी ने कहा कि विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए बहुत अधिक धन कम पड़ रहा है।राजा और पंडित जी की पहले से ही गहरी मित्रता थी तो राजा ने तुरंत कह दिया कि आगे से विश्विद्यालय निर्माण के लिए जो भी धन खर्च होगा वह मैं दूंगा आप बेफिक्र होकर काशी पधारिये और निर्माण पूरा करवाइये।महामना राजा के प्रति कृतज्ञ थे और गहरे मित्र भी सो विश्वविद्यालय का पहला कुलपति राजा को ही नियुक्त कर दिया।जब राजा ने गंगनहर के निर्माण की नींव रखी तो वैदिक पूजन के लिए महामना से बेहत्तर पुरोहित भला कौन हो सकता था.
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद लीग ऑफ नेशन का गठन हुआ।दुनिया भर के देशो की लिस्ट बनाई जा रही थी।तत्कालीन गवर्नर जनरल मांटेग्यू चेम्सफोर्ड जब लीग ऑफ नेशन में भारत का नाम शामिल करवाने को दुनिया के ताकतवर देशों के नेताओ से मिले तो उन्होंने यह कहकर भारत का नाम शामिल करने से मना कर दिया कि भारत एक गुलाम देश है और ब्रिटिश इंडिया जैसे किसी स्वायत देश का धरती पर अस्तित्व ही नही है।हताश और निराश चेम्सफोर्ड जब महाराजा गंगा सिंह से मिले तो महाराजा ने कहा कि अगर आप कहो तो इसके लिए एक कोशिश मैं कर लेता हूँ.
बाद में मांटेग्यू ने अपनी डायरी में लिखा कि मुझे नही पता महाराजा ने दुनिया के नेताओ से उस वक्त क्या कहा लेकिन कुछ ही देर बाद ब्रिटिश इंडिया का नाम भी लीग ऑफ नेशन में शामिल हो गया.
साभार : इस लेख के लिये तथ्यात्मक जानकारी श्री राजवीर सिंह चलकोइ (इतिहास विशेषज्ञ स्प्रिंगबोर्ड अकेडमी जयपुर) के एक वीडियो से ली गई है.
✍ लोकेन्द्र सिंह