हमारी जीत क्या है?
जीत के मायने क्या है?
इन विधानसभा चुनावों में हम किस लिए लड़े थे?
कोंग्रेस को जिताने ओर अपने मंत्री बनाने के लिए?
नही।
हरगिज नही।
इस बार के चुनाव थे
अहंकार vs स्वाभिमान
सत्ता के मद में चूर उस पार्टी के रहनुमाओं के खिलाफ जिसने अपनी ही रीढ़ की हड्डी को कमजोर करने का कार्य किया। सीधे शब्दो में कहूँ तो राजपूत जो सदैव ही बीजेपी के हितकारी रहे है उनके द्वारा राजपूतो को हद से ज्यादा अनदेखा करने पर उन्हें अपनी प्रतिष्ठा और अपने आप को जीवित महसूस कराना ही हमारी जीत है।
हम ना तो कोंग्रेस को जीताने के लिए लड़े ना अपना मंत्री बनाने के लिए, हम तो सिर्फ सत्ताधारी पार्टी को ये अहसास कराने के लिए लड़े थे कि भाई जिस समाज को तुम अनदेखा कर रहे हो वो समाज ही तुम्हारी जीवनरेखा है अगर उसको ही खत्म करने का प्रयत्न करोगे तो तुम भी जीवित नही रह पाओगे।
ओर इस बात का अहसास करवा भी दिया। जहां राजपूत एकमत होकर बीजेपी के खिलाफ गए वहां बीजेपी का कंडीडेट हार गया और जहां राजपूतों का समर्थन मिला वहां जीत गया। मतलब साफ है राजपूत भी अब वोट बैंक बनने की ओर अग्रसर है।
तो फिर मंत्री पद न मिलने पर ये है तौबा क्यों?
अपने अस्तित्व से ज्यादा आवश्यक है क्या मंत्री पद
शायद नही तो फिर जीत का जश्न मनाइए और अपने जीवित होने का प्रमाण देकर अपने आपको राजनीतिक स्तर पर स्थापित कीजिये।
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*कुँवर चेतन सिंह चौहान*